काज़िम जरवली
शायर-ए-फ़िक्र
Thursday, October 27, 2011
वन्दे मातरम
बात सच्ची हो तो चाहे जिस ज़बा मे बोलिये
,
फर्क मतलब पर नहीं पड़ता है ख़ालिक़ कि क़सम
।
"
माँ के पैरो मे है जन्नत" क़ौल है मासूम का
,
मै मुसल्ले पर भी कह सकता हुं
“
वन्दे मातरम
”
।।
--
”
काज़िम
”
जरवली
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